पार्किंसन रिसर्च

पार्किंसन रिसर्च में बड़ी सफलता: वैज्ञानिकों ने खोजी नई तकनीक

वैज्ञानिकों ने एक क्रांतिकारी तकनीक ASA-PD विकसित की है, जिसके ज़रिए अब उन सूक्ष्म प्रोटीन क्लस्टर्स को सीधे देखा जा सकता है जिन्हें पार्किंसन रोग की शुरुआत का कारण माना जाता है। यह खोज पार्किंसन समेत अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के इलाज की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है।

क्यों है ये खोज अहम?

पार्किंसन रोग की जड़ माने जाने वाले अल्फा-सिन्यूक्लिन ओलिगोमर्स (alpha-synuclein oligomers) को अब तक देखा नहीं जा सकता था। ये प्रोटीन के छोटे-छोटे गुच्छे मस्तिष्क में जमा होकर तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं।

नई तकनीक अत्यधिक संवेदनशील फ्लोरेसेंस माइक्रोस्कोपी (ultra-sensitive fluorescence microscopy) का इस्तेमाल करती है, जिससे इन प्रोटीन क्लस्टर्स की सीधी झलक मिल सकी।

रिसर्च से क्या पता चला?

पार्किंसन रोगियों के दिमाग में पाए गए ओलिगोमर्स, स्वस्थ व्यक्तियों की तुलना में ज़्यादा बड़े और चमकीले थे।

इनमें एक विशेष उप-श्रेणी (sub-class) भी पहचानी गई।

यह जानकारी भविष्य में “प्रोटीन बदलावों का एटलस” बनाने में मदद करेगी।

आगे का रास्ता

विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक केवल पार्किंसन तक सीमित नहीं रहेगी। इसे अल्ज़ाइमर और हंटिंगटन जैसी बीमारियों की रिसर्च में भी लागू किया जा सकता है।

Parkinson’s UK ने इसे “महत्वपूर्ण प्रगति” करार दिया है, जो भविष्य में नए उपचारों का मार्ग खोल सकती है।

ASA-PD तकनीक ने वैज्ञानिकों को दिमाग के उस अदृश्य हिस्से की झलक दी है, जो पार्किंसन की जड़ में छिपा था। यह खोज न सिर्फ़ समझ को गहरा करेगी, बल्कि लाखों रोगियों के लिए उम्मीद की नई किरण भी है।

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