वॉशिंगटन, 18 अक्टूबर 2025:
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से नाराज़ जनता एक बार फिर सड़कों पर उतर आई है। शनिवार को अमेरिका के कई प्रमुख शहरों में हजारों लोगों ने “नो किंग्स” के बैनर तले प्रदर्शन कर सरकार के रवैये पर सवाल उठाए। भीड़ ने साफ संदेश दिया — “लोकतंत्र में कोई राजा नहीं होता।”
इन रैलियों का सबसे बड़ा नज़ारा न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर, शिकागो, बोस्टन और वॉशिंगटन डीसी में देखने को मिला, जहां लोग झंडे, पोस्टर और बैनर लिए एकजुट दिखे। भीड़ के बीच ‘वी द पीपल’ लिखा एक विशाल पोस्टर लोगों की भागीदारी का प्रतीक बना। कई जगह माहौल प्रदर्शन से ज़्यादा उत्सव जैसा था — ढोल, संगीत और आज़ादी के नारे गूंज रहे थे।
यह विरोध ट्रंप के फिर से सत्ता में लौटने के बाद का तीसरा बड़ा जनआंदोलन है। इस बार का प्रदर्शन ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिकी सरकार के कई विभाग बंद हैं और वाशिंगटन में सत्ता संघर्ष चरम पर है। विपक्ष का आरोप है कि राष्ट्रपति प्रशासन अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर संस्थाओं पर दबाव बना रहा है।
वॉशिंगटन में प्रदर्शन के दौरान एक प्रतिभागी ब्रायन रेयमैन ने कहा, “अगर अपनी बात कहना देशद्रोह है, तो फिर लोकतंत्र का मतलब क्या बचा?” उन्होंने अपने हाथ में अमेरिकी झंडा उठाए कहा, “हम सरकार से नहीं, उसकी नीतियों से असहमत हैं।”
राष्ट्रपति ट्रंप इस दौरान फ्लोरिडा स्थित अपने निजी निवास मार-ए-लागो में मौजूद रहे। उन्होंने एक टीवी इंटरव्यू में कहा, “लोग मुझे राजा कहते हैं, लेकिन मैं जनता का सेवक हूँ।”
हालांकि, उनके इस बयान ने विरोध को और हवा दी, क्योंकि प्रदर्शनकारियों का मानना है कि राष्ट्रपति के तौर पर उनका व्यवहार लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
आयोजकों के अनुसार, शनिवार को दो हजार से अधिक स्थानों पर रैलियों का आयोजन हुआ। इनमें कई नागरिक संगठनों और राजनीतिक समूहों ने भाग लिया। डेमोक्रेटिक नेताओं ने इसे “जनता की आवाज़ का पुनर्जागरण” बताया।
सीनेटर क्रिस मर्फी ने कहा, “जब आम लोग इतनी बड़ी संख्या में एक मंच पर आते हैं, तो यह लोकतंत्र की सबसे मजबूत निशानी होती है। यह दिखाता है कि देश तानाशाही की दिशा में नहीं झुकेगा।”
वहीं रिपब्लिकन पार्टी ने इन प्रदर्शनों को “हेट अमेरिका मूवमेंट” कहा और आरोप लगाया कि यह सब सरकार को अस्थिर करने की साजिश है।
हाउस स्पीकर माइक जॉनसन ने कहा, “ये वही लोग हैं जो पूंजीवाद के खिलाफ हैं और अमेरिका की बुनियाद को कमजोर करना चाहते हैं।”
कई प्रदर्शनकारियों ने इस बयानबाज़ी को व्यंग्य में लिया। वॉशिंगटन में एक प्रदर्शनकारी ने मज़ाकिया लहजे में कहा, “अगर सच्चाई बोलना देश से नफरत है, तो हम सब देश से बहुत ‘प्यार’ करते हैं।”
डेमोक्रेट्स का कहना है कि यह आंदोलन सिर्फ सरकार खोलने की मांग नहीं, बल्कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों के खिलाफ एक लोकतांत्रिक प्रतिक्रिया है। उनके मुताबिक, यह प्रदर्शन यह बताने के लिए हैं कि अमेरिका किसी एक व्यक्ति की सत्ता के अधीन नहीं हो सकता।
सीनेटर मर्फी ने कहा,
“ट्रंप खुद को सर्वोच्च मानते हैं, लेकिन लोकतंत्र में जनता ही असली ताकत होती है। सरकार चाहे बंद रहे या खुली — संविधान चलता रहेगा।”
आयोजक एजरा लेविन के मुताबिक, यह विरोध भविष्य में एक बड़ा सामाजिक आंदोलन बन सकता है। उन्होंने कहा, “अगर अब भी लोग चुप रहे तो लोकतंत्र की आवाज़ कमजोर पड़ जाएगी। यह वक्त है जब जनता को बताना होगा कि देश किसी एक आदमी की मर्ज़ी पर नहीं चलेगा।”