नई दिल्ली। सुबह-सुबह जब सब्ज़ी मंडी से ठेले वाले सब्ज़ी लेकर गलियों में निकलते हैं, तो उनके पीछे सिर्फ़ गाड़ी का पहिया ही नहीं घूमता, बल्कि पूरे परिवार की उम्मीद भी चलती है। लेकिन २०१९ की कोरोना महामारी ने जब इन ठेलों के पहियों को रोक दिया था, तब सबसे बड़ी चोट इन्हीं पर पड़ी थी। ऐसे में पीएम मोदी नेतृत्व में केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना (PM SVANidhi) उनके लिए नई सांस साबित हुई।
पुणे के आंबेगाव बुद्रुक की गलियों में सब्ज़ी बेचने वाले रमेश जाधव जी अपने ठेले पर आलू-प्याज़ सजाते हुए कहते हैं –
“पहले उधारी पर माल लाता था, रोज़ चिंता रहती थी कि पैसा कहाँ से चुकाऊँ, हर रोज टेंशन रहती थी । जब से पीएम स्वनिधि से 10,000 रुपये मिले, अब सीधे थोक में खरीदता हूँ। मुनाफ़ा बढ़ा है और बच्चों की फ़ीस समय पर भर पा रहा हूँ। और मेरा टेंशन भी ख़तम हुआ है।”
भोपाल की शांति बाई, जिनका छोटा सा चाय का ठेला है, हंसते हुए बताती हैं –
“पहले ग्राहक कहते थे QR से पेमेंट करेंगे? मैं मना कर देती थी। अब सरकार से लोन मिला तो मोबाइल और QR कोड भी ले लिया। ग्राहक भी खुश, और मुझे भी हिसाब आसान हो गया।”
ये कहानियाँ सिर्फ़ रमेश और शांति की नहीं हैं, बल्कि उन लाखों लोगों की हैं जिनकी ज़िंदगी इस योजना ने बदली है।
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़, अगस्त 2025 तक देशभर में 96 लाख से ज़्यादा छोटे लोन दिए जा चुके हैं, जिससे 68 लाख से अधिक परिवार सीधे-सीधे लाभान्वित हुए। डिजिटल पेमेंट अपनाने वाले करीब 47 लाख विक्रेता अब औपचारिक बैंकिंग व्यवस्था का हिस्सा हैं। लेन-देन का आँकड़ा करोड़ों से पार हो चुका है और सरकार की ओर से कैशबैक और इनाम ने छोटे व्यापारियों को डिजिटल इंडिया से जोड़ा है।
पहले जहाँ रेहड़ी वाले केवल नकद पर निर्भर रहते थे, अब वही QR कोड से पेमेंट लेते नज़र आते हैं। मंडियों में भी माहौल बदल गया है। सब्ज़ी मंडी के एक व्यापारी बताते हैं –
“पहले छोटे विक्रेता उधारी पर सामान मांगते थे। अब वे नकद या डिजिटल पेमेंट करते हैं। इससे हमको भी भरोसा रहता है कि पैसा फँसेगा नहीं।”
केंद्र सरकार की पीएम स्वनिधि का आगे का लक्ष्य
भारतीय केंद्र सरकार ने इस योजना को 2030 तक बढ़ा दिया है। अब पहली किश्त का ऋण ₹15,000, दूसरी किश्त ₹25,000 और तीसरी किश्त ₹50,000 तक मिलेगा। इसके साथ ही, समय पर लोन चुकाने वालों को RuPay कार्ड भी दिया जाएगा, जिससे वे डिजिटल लेन-देन में और आगे बढ़ेंगे।
भारत की आत्मनिर्भरता की पहचान
इस योजना का सबसे बड़ा असर यह हुआ है कि छोटे व्यापारियों को अब लगता है कि वे भी शासकीय सिस्टम का हिस्सा हैं। वे सिर्फ़ ठेला लगाने वाले नहीं, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा हैं।
लखनऊ की एक महिला विक्रेता ने बड़ी सहजता से पीएम स्वनिधि योजना के बारे में कहा –
“पहले सोचती थी सरकार की योजना बड़े लोगों के लिए होती है, छोटे लोगों को कुछ नहीं मिलता लेकिन अब समझ आया कि ये हमारे लिए भी है। आज ठेले पर जब भीड़ लगती है तो लगता है कि जिंदगी पटरी पर लौट आई है।”
पीएम स्वनिधि योजना सिर्फ़ छोटे व्यपारियों को कर्ज़ देने की प्रक्रिया नहीं है, यह उन लोगों की मेहनत का सम्मान है जो हर दिन सड़कों पर खड़े होकर हमारी ज़रूरतें पूरी करते हैं। जब उनकी ठेलियों की घंटी फिर से बजने लगती है, तो यह सिर्फ़ कारोबार की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की आवाज़ होती है।