अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता दंपती अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो अब अमेरिका छोड़कर स्विट्ज़रलैंड में नया अकादमिक अध्याय शुरू करने जा रहे हैं। दोनों अगले साल जुलाई से यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज़्यूरिख (UZH) के अर्थशास्त्र विभाग में शामिल होंगे, जहां वे डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स पर एक नया सेंटर स्थापित करेंगे।
एमआईटी से यूरोप की ओर रुख
वर्तमान में दोनों मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में कार्यरत हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज़्यूरिख की घोषणा के अनुसार, बनर्जी और डुफ्लो को Lemann Foundation की फंडिंग से एंडोव्ड प्रोफेसरशिप दी जाएगी।
यह केंद्र — Lemann Center for Development, Education and Public Policy — वैश्विक स्तर पर शिक्षा नीति और विकास अर्थशास्त्र पर केंद्रित शोध को बढ़ावा देगा।
अमेरिकी विज्ञान पर हमलों के बीच फैसला
हालांकि विश्वविद्यालय के बयान में उनके अमेरिका छोड़ने के कारणों का उल्लेख नहीं था, लेकिन यह कदम उस समय आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के तहत शोध फंडिंग में कटौती और शैक्षणिक स्वतंत्रता पर सवालों ने कई शीर्ष वैज्ञानिकों को चिंतित कर दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन नीतियों के चलते अमेरिका से “ब्रेन ड्रेन” यानी प्रतिभाओं का पलायन तेज़ हो सकता है। कई यूरोपीय संस्थान इस मौके पर अमेरिकी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को अपने यहां बुलाने की कोशिश में हैं।
एस्थर डुफ्लो ने इसी साल मार्च में Le Monde में एक लेख पर सह-हस्ताक्षर किए थे, जिसमें उन्होंने अमेरिकी विज्ञान पर “अभूतपूर्व हमलों” की आलोचना की थी।
“नए अध्याय की शुरुआत”
डुफ्लो ने कहा, “यह नया केंद्र हमें अपने शोध और शिक्षण को और व्यापक स्तर पर ले जाने का मौका देगा। हम चाहते हैं कि नीति निर्माण, अकादमिक रिसर्च और छात्रों के मार्गदर्शन के बीच की खाई को पाटा जा सके।”
विश्वविद्यालय के अध्यक्ष माइकल शेपमैन ने कहा, “हमें खुशी है कि दुनिया के दो सबसे प्रभावशाली अर्थशास्त्री हमारे साथ जुड़ रहे हैं। उनका अनुभव हमारे संस्थान और वैश्विक नीति विमर्श दोनों के लिए अमूल्य रहेगा।”
नोबेल से लेकर नीति तक
अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो ने 2019 में माइकल क्रेमर के साथ नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार साझा किया था।
उनके “वैश्विक गरीबी कम करने के लिए प्रयोगात्मक दृष्टिकोण” को दुनिया भर में सराहा गया था।
दोनों MIT से अंशकालिक रूप में जुड़े रहेंगे और स्विट्ज़रलैंड में अपने नए केंद्र के माध्यम से विकासशील देशों में नीति सुधारों पर शोध जारी रखेंगे।
इस बीच, 2025 का नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार सोमवार को घोषित किया जाएगा।
अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता दंपती अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो अब अमेरिका छोड़कर स्विट्ज़रलैंड में नया अकादमिक अध्याय शुरू करने जा रहे हैं। दोनों अगले साल जुलाई से यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज़्यूरिख (UZH) के अर्थशास्त्र विभाग में शामिल होंगे, जहां वे डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स पर एक नया सेंटर स्थापित करेंगे।
एमआईटी से यूरोप की ओर रुख
वर्तमान में दोनों मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में कार्यरत हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ़ ज़्यूरिख की घोषणा के अनुसार, बनर्जी और डुफ्लो को Lemann Foundation की फंडिंग से एंडोव्ड प्रोफेसरशिप दी जाएगी।
यह केंद्र — Lemann Center for Development, Education and Public Policy — वैश्विक स्तर पर शिक्षा नीति और विकास अर्थशास्त्र पर केंद्रित शोध को बढ़ावा देगा।
अमेरिकी विज्ञान पर हमलों के बीच फैसला
हालांकि विश्वविद्यालय के बयान में उनके अमेरिका छोड़ने के कारणों का उल्लेख नहीं था, लेकिन यह कदम उस समय आया है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के तहत शोध फंडिंग में कटौती और शैक्षणिक स्वतंत्रता पर सवालों ने कई शीर्ष वैज्ञानिकों को चिंतित कर दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इन नीतियों के चलते अमेरिका से “ब्रेन ड्रेन” यानी प्रतिभाओं का पलायन तेज़ हो सकता है। कई यूरोपीय संस्थान इस मौके पर अमेरिकी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को अपने यहां बुलाने की कोशिश में हैं।
एस्थर डुफ्लो ने इसी साल मार्च में Le Monde में एक लेख पर सह-हस्ताक्षर किए थे, जिसमें उन्होंने अमेरिकी विज्ञान पर “अभूतपूर्व हमलों” की आलोचना की थी।
“नए अध्याय की शुरुआत”
डुफ्लो ने कहा, “यह नया केंद्र हमें अपने शोध और शिक्षण को और व्यापक स्तर पर ले जाने का मौका देगा। हम चाहते हैं कि नीति निर्माण, अकादमिक रिसर्च और छात्रों के मार्गदर्शन के बीच की खाई को पाटा जा सके।”
विश्वविद्यालय के अध्यक्ष माइकल शेपमैन ने कहा, “हमें खुशी है कि दुनिया के दो सबसे प्रभावशाली अर्थशास्त्री हमारे साथ जुड़ रहे हैं। उनका अनुभव हमारे संस्थान और वैश्विक नीति विमर्श दोनों के लिए अमूल्य रहेगा।”
नोबेल से लेकर नीति तक
अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो ने 2019 में माइकल क्रेमर के साथ नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार साझा किया था।
उनके “वैश्विक गरीबी कम करने के लिए प्रयोगात्मक दृष्टिकोण” को दुनिया भर में सराहा गया था।
दोनों MIT से अंशकालिक रूप में जुड़े रहेंगे और स्विट्ज़रलैंड में अपने नए केंद्र के माध्यम से विकासशील देशों में नीति सुधारों पर शोध जारी रखेंगे।
इस बीच, 2025 का नोबेल अर्थशास्त्र पुरस्कार सोमवार को घोषित किया जाएगा।